Vasudaiv Kutumbakam - The world is a family! (Maha Upanishad)
Can art bloom in a vacuum? Do society and culture not influence art and artists? Can art be contained in geographical boundaries? The answer to all the queries above is a big NO. Art and its artists are an integral part of society. Art shapes the socius, and society offers new vistas to art. Artists are mean to be free and beyond any borders.
However, time, space and circumstances affect them. Recently the world has been braving a Covid pandemic. The pandemic has forced us to think again about our existence and identity. Who are we? What are our identities? Do materialism and consumerism answer add to or soften human miseries? Can machines and technology substitute human interaction? Such questions are rising in our heads more often than not.
The pandemic equally affects art and its artists. The question of existence is nuanced, and the pandemic has added gravitas and immediacy to it. Our project is an endeavour to connect art and artists across borders in these challenging times. We are trying to connect artists from India and the UK online, as a starting point to look beyond human-made borders. The world is connected like a family if we could look beyond our prejudices. The ancient Indian scripture of the Maha Upanishada reiterates the same – Vasudaiv Kutumbakam, the world is a family.
Our project connects artists online for baat-cheet or dialogue and discussions across the borders. We are offering a platform to artists to share their professional stories, experiences, crafts and journey with their cohorts across India and the UK. It is a unique project because it facilitates communication and camaraderie among the artists. The project also proffers an opportunity to come along for small collaborations leading to short creative outputs. The focus of our project is to foster connections among the artists through dialogues and networking. As the saying goes: baat se baat banti hai or communication is the key to success.
Our project ‘India-UK Creative Industires@75’ commemorates the 75th anniversary of Indian Independence and is sponsored by AHRC and Innovate UK. This project aims to facilitate constructive connections across borders among artists and creative industries. We are enabling the chit-chat or baat cheet among them with a firm belief that baat niklegi to phir door talak jayegi, or the talk will travel far, as observed by the great Indian poet Mirza Ghalib!
वासुदैवकुटुंबकम- यह विश्व एक परिवार है! (महाउपनिषद)।
कला क्या निर्वात-शून्य में पनप सकती है? क्या कलाकार की प्रतिभा पर समाज का कोई प्रभाव नहीं? क्या कला को भोगोलिक सीमाओं में बांधा जा सकता है ? इन सभी सवालों का जवाब है नहीं!
कला और कलाकार दोनो ही समाज का हिस्सा है। कला समाज को आकर देती है और समाज कला को नए आयाम देता है। कलाकार स्वच्छंद हैं जिन्हें कोई सीमा सीमित नहीं कर सकती पर उन पर समय और परिस्थितियों का प्रभाव हमेशा नज़र आता है। हाल ही में विश्व एक महामारी से गुज़रा है या यूँ कहें की गुज़र रहा है। महामारी ने सभी को अपने अस्तित्व और पहचान के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है। कौन हैं हम? हमारी पहचान क्या है ? क्या भौतिकवादीता और बाज़ारवाद सभी समस्याओं का हल है? क्या मशीन और तकनीक मानवीय सम्बंधों को विस्थापित कर सकती है ? ये सारे सवाल अचानक से ज़हन में उठने लगे हैं।
कला और कलाकार भी इससे प्रभावित हुए हैं। अस्तित्व का सवाल गम्भीर है। महामारी ने उसे और गहरा बना दिया। हमारा ये प्रोजेक्ट प्रयास है इस आपदा के दौर में कला के द्वारा लोगों को सीमाओं के परे जोड़ने का। ब्रिटेन में बसे कलाकारों, ख़ासकर के भारतीय मूल के कलाकारों, को सीमाओं के परे भारत और भारतीय कलाकारों से अन्तर्जाल के द्वारा जोड़ने का। यह सिर्फ़ शुरुआत है जोड़ने की। ये विश्व एक है हमने इसे बाँटा है। अगर अपने पूर्वागृहों को हटा कर देखें तो सब जुड़े है एक परिवार की तरह- वासुदेव के कुटुम्ब की तरह!
ये एक अनूठा प्रोजेक्ट है क्यूँकि यहाँ कलाकारोंको आपस में पहले सिर्फ़ बातचीत करने के लिए आभासी मंच मुहैया कराया जा रहा है। हमारा प्रयास है की कलाकार सीमाओं के परे बैठे आपने साथियों से मन साझा कर पाएँ, कलाकारों की कला यात्रा की चर्चा हो, कला की बात हो। और अगर मन साझा हों तो फिर आगे मिलकर दो देशों की संस्कृतियों के साथ आने की बात हो। किसी भी कलाकार पर किसी प्रस्तुति पर्फ़ॉर्मन्स का कोई दबाव नहीं है । यूँ कहें की कलाकार के भीतर के इंसान को जानने की कोशिश है ये, उनसे बात करके कलाकारों को आपस में बात करने के लिए मंच प्रदान कर के। किसी ने सच ही तो कहा है बात से बात बनती है!
हमारा यह प्रोजेक्ट ‘भारतीय-ब्रिटेन रचनात्मक उद्योग@७५’, भारतीय स्वतंत्रता की पिछतरवीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में कला और मानविकी शोध संस्थान (AHRC) एवं यू के आर आइ द्वारा प्रायोजित है। इसका उद्देश्य दोनो देश के कलाकारों के बीच नए सम्बंधों का सृजन है जिसकी शुरुआत हमने बात-चीत से की है, इस यक़ीन से की ‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी’ (ग़ालिब)!